क्षमा वीर हिंदू कुलभूषण राजा पृथ्वीराज चौहान का इतिहास

एक ऐसा योद्धा जो असहाय और दुश्मन की कैद में कष्टों में झुलसा फिर भी अपने पराक्रम और विवेक से ऐसे शब्द बेधी बाण चलाए जिससे ना सिर्फ दुश्मन का सफाया किया बल्कि भारत की पवित्र धरती को जुल्मों से उबारा..और इतिहास का यह योद्धा अमर था अमर है और सर्वदा अमर ही रहेगा। जी हाँ हम बात कर रहें है कि महान् हिन्दू सम्राट भारतेश्वर पृथ्वीराज चौहानकी।
आज हम आपको सरल शब्दों में इतिहास के सबसे प्रसिद्ध चौहान वंश के शासक पृथ्वीराज चौहान के बारे में वो दिलचस्प बातें बताएंगे जिसे जानकर ना सिर्फ आप हैरान होंगे बल्कि उनके साहस और पराक्रम से निश्चित ही प्रेरित होंगे।

पृथ्वी राज चौहान का प्रारंभिक जीवन-

यह तो सभी जानते है कि पृथ्वी राज चौहान का जन्म1220 विक्रम संवत्सर ज्येष्ठ मास कृष्ण पक्ष की द्वादशी 12-3-1220 तिथि को तदनुसार ग्रेगोरियन पंचाग के 1173 जून-मास के प्रथम 1-4-1173 दिनांक को गुजरात राज्य के पाटण पत्तन में हुआ। पृथ्वी राज चौहान के इस जन्म का उल्लेख पृथ्वीराज विजय महाकाव्य में मिलता है।  पृथ्वीराज चौहान 6 भाषाओं में निपुण थे, जैसेसंस्कृत, प्राकृत, मागधी, पैशाची, शौरसेनी और अपभ्रंश भाषा.  इसके अलावा उन्हें मीमांसा, वेदान्त, गणित, पुराण, इतिहास, सैन्य विज्ञान और चिकित्सा शास्त्र का भी ज्ञान था.

इनके पिता का नाम सोमेश्वर और माता का नाम कर्पूर देवी था। इनके एक छोटा भाई हरिराज और एक छोटी बहन पृथा थी। ये अपने माता-पिता के विवाह के 12 वर्ष बाद पैदा हुए थे इसलिए इनका नामकरण बहुत से महान् ज्योतिषियों द्वारा किया गया जिसमें सभी विद्वेत्ताओं ने इनकी कुंडली अनुसार पूरे पृथ्वी पर राज करने के लिए पहले ही संकेत दे दिए थे। जिसके चलते इनका नाम पृथ्वीराज चौहान रखा गया। 11 वर्ष की छोटी सी आयु में ही इनके सर से पिता का साया उठ जाने से पूरे राज्य का भार इनके कंधो पर गया था। और महज़ 13 साल की उम्र में ही पिता की राजगद्दी पर बैठ गए थे।

पृथ्वीराज की अमिट प्रेम कहानी-

पृथ्वी राज चौहान जितने महान शासक पराक्रमी वीर योद्धा थे उतने ही बड़े इतिहास के सबसे बड़े प्रेमी भी कहलाते हैं। भले ही पृथ्वीराज चौहान के 13 रानियाँ थी मगर सबसे अधिक प्रेम अपनी प्रेमिका संयोगिता पर लुटाया था वैसे तो पृथ्वीराज चौहान अपनी सभी पत्नियों के प्रति स्नेह और प्यार से जीवन यापन किया था, मगर उनका और कन्नौज नगर की राजकुमारी और राजा जयचन्द की पुत्री संयोगिता का बिना देखे एक-दुसरे से निस्वार्थ प्रेम करना उनकी प्रेम कहानी को अमर बनाता है। और संयोगिता भी पृथ्वीराज चौहान के सिर्फ चित्र को देखकर उनके प्रेम में पड़ गई थी। लेकिन संयोगिता के पिता कन्नौज के राजा जयचन्द पृथ्वीराज चौहान को पसन्द नहीं करते थे जिस वजह से वे संयोगिता का विवाह किसी ओर से करने लगे और फिर जब यह बात पृथ्वीराज चौहान को मालूम हुई तो उन्होंने संयोगिता को स्वंयवर से उठा लिया और गन्धर्व विवाह किया। तभी से पूरे भारत में संयोगिता और पृथ्वीराज चौहान की प्रेम कहानी अमर हो गई।

पृथ्वी राज चौहान और मोहम्मद गौरी का प्रसिद्ध युद्ध-

 बड़े बड़े इतिहासकारों और जानकारों का यह मानना है कि पृथ्वीराज चौहान भारत देश के सबसे वीर और पराक्रमी सम्राट थे। वे एक ऐसे वीर योद्धा थे जो ना सिर्फ अस्त्र-शस्त्र विधा में निपूण थे बल्कि बहुत बड़े कूटनीतिक और विशाल सेना वाले थे। जिसके चलते किसी भी दुसरे अन्य देशों के राजाओं की हिम्मत नहीं होती थी भारत की ओर आंख उठाकर देखने की।

पृथ्वी राज चौहान की सेना में घोड़ों की सेना का बहुत अधिक महत्व था जिसके चलते पृथ्वीराज की सेना में 70000 घुड़सवार सैनिक थे और कहते है जैसे-जैसे पृथ्वीराज चौहान प्रत्येक युद्ध पर विजय पाते जाते और सेना का विस्तार करते जाते। पृथ्वी राज चौहान के पराक्रम के चर्चें चारों दिशाओं में गुंजायमान थे। उसी वक्त पश्चिम देश का एक मुस्लिम शासक मोहम्मद गौरी(घोरी) जो बहुत ही क्रुर शासक था जो चारो तरफ मारकाट कर स्त्रियों के साथ बलात्कार और नरसंहार कर रहा था। 

जब उस अक्रान्ता ने भारत की ओर अपने कदम बढ़ाए तो प़थ्वीराज चौहान ने उसे युद्धों में मुहं के बल गिराया। कुछ इतिहासकारों का मानना है कि पृथ्वीराज चौहान के साथ मोहम्मद गौरी ने18 बार युद्ध किया मगर उसे 17 बार उसे पृथ्वीराज चौहान के हाथों के करारी हार मिली। और उसकी हर हार के बाद पृथ्वीराज चौहान ने उसे माफ कर देते थे, मगर हर हार के बाद मोहम्मद गौरी फिर से पृथ्वीराज चौहान पर आक्रमण कर देता। और कुछ इतिहासकार ऐसे इन युद्धो की संख्या को गलत बताते है। मगर इतिहास के अनुसार और पृथ्वीराजरासौ नामक पुस्तक में अन्तिम तराइन के युद्ध का जिक्र है जिसमें पृथ्वीराज चौहान के साथ धोखे से मोहम्मद गौरी ने युद्ध जीत लिया और उनको बन्दी बनालिया।

पृथ्वीराज चौहान ने किया मोहम्मद गौरी का अन्त-

जब धोखे से मोहम्मद गौरी ने पृथ्वीराज चौहान को बन्दी बना लिया तो कारागृह में डाल दिया और उनको क्रुर यातनाएं देने लगा। साथ ही मोहम्मद गौरी पृथ्वीराज चौहान को मुस्लिम धर्म अपनाने के लिए बाधित करने लगा, मगर पृथ्वीराज सारे कष्ट सहते हुए कभी भी मोहम्मद गौरी के सामने नहीं झुके।

एक दिन मोहम्मद गौरी के आदेश पर पृथ्वीराज चौहान की आंखों में गर्मा-गरम सरिए डाल दिए गये जिससे वे अन्धे हो गए। जब इस बात का पता पृथ्वीराज चौहान के सगे -सम्बन्धियों और बचपन के ख़ास दोस्त चंदबरदाईको लगा तो वे बहुत आहत हुए। चंदबरदाई एक बहुत ही अच्छे विद्वेता और कविताओं पाठ में माहिर थे। उन्होंने अपने दोस्त को गौरी की क़ैद से छुड़ाने के लिए शब्दों का जाल बुना और इनके शब्द बेधी बाण में निपूण होने की बात कहीं। मोहम्मद गौरी इस विधा को देखना चाहते थे इसलिए उन्होंनेसभा में आयोजन रखा, जिसमें पृथ्वीराज चौहान को अपनी कला का प्रदर्शन करने के लिए कहा।
वहीं चंदबरदाईने एक काव्यात्मक पंक्ति के जरिए पृथ्वीराज चौहान से कहा-

'चार बांस चौबीस गज, अंगुल अष्ट प्रमाण, ता ऊपर सुल्तान है मत चूके चौहान'

और वहीं तुरन्त कुछ पलों में जब तक मौहम्मद गौरी कुछ समझ पाता उसके गले के बीचों-बीच तीर जा बिधे और वहीं मोहम्मद गौरी के प्राण प्रखेरू उड़ गए।
कुछ इतिहास की किताबों के अनुसार ये भी कहा जाता है कि पृथ्वीराज चौहान और उनके दोस्त चंदबरदाईने अपनी पीड़ादायक स्थिति से बचने के लिए एक- दुसरे की जान ले ली और जब इस बात का उनकी प्रेमिका संयोगिता का मालूम हुआ तो वे भी सती हो गई। मगर वहीं कुछ इतिहासकारों का मानना है कि पृथ्वीराज चौहान वापस राजमहल गए और अपनी आयु का भोग करके स्वर्ग सिधार गए।

शूरवीर महाराज पृथ्वीराज चौहान पर फिल्म आ रही है. जिसमें उनका किरदार बॉलीवुड अभिनेता अक्षय कुमार निभाएंगे. 

दोस्तों आज दिल्ली का पृथ्वीराज का ये किला लुप्त होने की कगार पर है 



लुप्त होने की कगार पर ये पृथ्वीराज चौहान का किला, इस किले से लड़े थे 17 युद्ध


बचपन से ही पराक्रमी योद्धा रहे पृथ्वीराज चौहान का जन्म अजमेर में सन 1149  में हुआ था. पृथ्वीराज चौहान ने तरावड़ी में अपना किला बनवाया था. करनाल के कस्बा तरावड़ी जिसका पहला नाम तराईन था. धीरे धीरे इसका नाम तरावड़ी पड़  गया.  इस किले में प्रवेश के दो रास्ते थे.

पृथ्वीराज चौहान के पास एक  बड़ी सेना थी जिसे कोई भी पराजित नहीं कर सकता था. क्योकि इस सेना का नेतृत्व पृथ्वीराज चौहान खुद करते थे. तरावड़ी के किले से पृथ्वीराज ने लगभग सत्रह युद्ध लड़े जिनमे सोलह बार पृथ्वीराज चौहान की जीत हुई. आखिर में धोखे से मुहम्मद गौरी ने पृथ्वीराज चौहान  को मात दी. क्योकि पृथ्वीराज चौहान गउओं  की पूजा करता था मुहम्मद गोरी ने युद्ध में सैकड़ों गउओं  को खड़ा कर दिया .

]पृथ्वीराज चौहान ने गौ  माता को युद्ध में देखकर अपने हथियार डाल  दिए और इस तरह पृथ्वीराज चौहान इस युद्ध में हार गया और पृथ्वीराज चौहान को सन 1192 में इसी किले में मौत  के  घाट  उतार  दिया गया. इस तरह एक महान पराक्रमी शूरवीर योद्धा का अंत हुआ.

उसके बाद मुहम्मद गोरी ने इस किले पर राज किया. पृथ्वीराज का यह किला अब खंडर हो चूका है किले के नाम पर केवल दो द्वार ही बचे है . अंदर क्लॉनिया काट कर लोग रह रहे हैं. सन 1947 में भारत पाकिस्तान बनने के बाद इस किले को पाकिस्तान से आये हिन्दू शरणार्थियों के लिए कैम्प के रूप में प्रयोग किया गया था जिसके बाद से यह लोग यही पर रह रहे है.

किले को पूरी तरह से लोगों ने ध्वस्त कर दिया है. परन्तु मुख्य गेट के द्वार पर आज भी गोलियों के निशान  देखे जा सकते है. किले की दीवारे जो थोड़ी बहुत बची है आज भी वह उस महान योद्धा के इतिहास को संजोये हुए है.

स्थानीय लोग बताते है की पुरातत्व विभाग की लापरवाही के कारण एक एतिहासिक धरोवर लुप्त होने के कगार पर है. हर पार्टी और सरकार ने वोट बैंक की खातिर इस ऐतिहासिक धरोहर को लुप्त होने की कगार पर पहुंचा दिया. 

Source by : https://bit.ly/3hTTfw1 

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25 टिप्‍पणियां:

  1. Good information 👍 and it will help to understanding our past for new generation

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  2. Very good 😊😃☺️☺️☺️ all the best for further

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  3. Bahut badiya thakur sahab. aap apni rajput community par etna accha likhte ho bhagvan aapko or likhne ki sakti pardan kare.

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