स्वर्ण अक्षरों में रचा महाराणा प्रताप की शौर्य गाथा जाने उनके जीवन के बारे में...
भारत के इतिहास में योद्धाओं की कमी नहीं हैं| हर योद्धा की अपनी शौर्य गाथा और इतिहास है, जो उन्हें महान और हर नागरिक को सोचने पर मज़बूर कर देता है कि भारत एक महान देश हैं| तो चलिए आज हम आपको भारत के वीर शौर्य और साहस से परिपूर्ण महाराणा प्रताप के जीवन से जुड़ी बाते बताते हैं| महाराणा प्रताप मेवाड़ के महान हिंदू शासक थे जिन्होनें सोलहवीं शताब्दी में मुग़ल राजा अकबर को धूल चटा दी थी|
महाराणा प्रताप का आरंभिक जीवन
महाराण प्रताप का जन्म महाराणा उदयसिंह और माता राणी जयवंत कंवर के घर हुआ था, उनका परिवार राजस्थान के कुम्भलगढ़ का रहने वाला था| वह 9 मई 1540 में मेवाड़ के 13वें राजपूत राजा बने थे
और कुल 11 शादियां की थी और वह भारत के सबसे साहसी और निडर राजाओं में से एक माने जाते थे| उनके बलिदान से संस्कृति, स्वतंत्रता और भारत के लोगों की रक्षा हुई| बचपन से महाराणा प्रताप को हाथियों की जानकारी इक्कठा करना और शस्त्र विद्या सीखना पसंद था| कद काठी से वह 7 फीट, 5 इंच लंबे थे और वह युद्ध के मैदान में 110 किलोग्राम का कवच पहन कर जाया करते थे| महाराण प्रताप के जन्म को लेकर लेखक जेम्स टॉड का मानना था कि कि वह मेवाड़ के कुंभलगढ में जन्में मगर इतिहासकार विजय नाहर के अनुसार महाराणा प्रताप की जन्म कुंडली व कालगणना के अनुसार महाराणा प्रताप का जन्म पाली के राजमहलों में हुआ|
हल्दीघाटी युद्ध
महाराणा प्रताप का दबदबा इस बात से ही पता चलता था की मुगल सम्राट अकबर ने सभी राजपूत राज्यों पर जीत हासिल की थी मगर कभी महाराणा प्रताप के मेवाड़ को हासिल नहीं कर पाए थे| जिसके बाद लगातार महाराणा प्रताप ने मुगल सेना से युद्ध किया और अपना लोहा मनवाया| इतना ही नहीं बल्कि हल्दीघाटी के युद्ध में, महाराणा प्रताप ने अपने घोड़े के साथ एक प्रतिद्वंद्वी बहलोल खान को काट कर टुकड़ों में बाट दिया है| इस युद्ध में भील सरदार राणा पूंजा जी का योगदान सबसे ज्यादा सराहनीय रहा था| शत्रु सेना से घिर चुके महाराणा प्रताप को झाला मानसिंह ने आपने प्राण दे कर बचाया ओर महाराणा को युद्ध भूमि छोड़ने के लिए कहा| इस युद्ध में लगभग 18000 लोग मारे गए थे |
मेवाड़ को जीतने के लिये अकबर ने छल-बल हर तरह का प्रयास किया था| इस युद्ध के बाद अधिकांश राजपूत राजवंश जिनमें गोगुन्दा शामिल थे और बूंदी ने अकबर के सामने आत्मसमर्पण कर दिया था, लेकिन महाराणा प्रताप ज्यों ते त्यों डटे रहें जिसके कारण महाराणा प्रताप का नाम भारतीय इतिहास में स्वर्ण अक्षरों में लिखा गया हैं
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इतिहासकार मानते हैं कि इस युद्ध में कोई विजय नहीं हुआ था |
हल्दीघाटी के युद्ध में कौन था बहलोल खान
बहलोल खान अकबर की सेना का मुख्य सिपहसालार था| अकबर के लिए बहलोल खान सबसे भरोसेमंद और विश्वासी सेना प्रमुख था| उसकी खासियत थी कि बहलोल खान अपने जीवन में कभी भी कोई भी युद्ध नहीं हारा था|
महाराणा प्रताप का चित्तौड़ किला
चित्तौड़ किला मेवाड़ की विरासत थी लेकिन युद्ध के दौरान मुगलों ने इसे कब्ज़ें में कर लिया था, जिसके बाद महाराणा प्रताप ने प्रतिज्ञा ली वह पुआल के बिस्तर पर सोएंगे और जब तक चित्तौड़ वापस उनके कब्ज़ें में नहीं आ जाता, तब तक पत्ती की थाली में खाना खाएंगे| उनकी इस प्रतिज्ञा ने प्रजा को उनके प्रति और दयालु और भावुक बना दिया|
आज भी ज्यादातर राजा उनके सम्मान में बिस्तर के नीचे उनकी प्लेट और तिनके के नीचे एक पत्ता रखते हैं| यह प्रथा राजस्थान में आज भी प्रचलित हैं| इतिहास में जब भी महाराणा प्रताप की बात होती हैं उनके घोड़े चेतक का नाम जरूर आता हैं चेतक महाराणा प्रताप का वफादार घोड़ा था जिसने अपने गुरु को बचाते हुए अपने प्राण त्याग दिए थे| मगर उनके पालतू हाथी ने मुगल सेना को युद्ध में कुचल दिया था|
दिवेर-छापली का युद्ध
साल 1582 में हुआ दिवेर का युद्ध महाराणा प्रताप के जीवन में बहुत जरुरी युद्ध में से एक था| इस युद्ध में महाराणा प्रताप ने अपने खोये हुए राज्यों की पुनः प्राप्ती की थी| यह एक ऐसा युद्ध था जिसे भारतीय इतिहास में मेवाड़ के मैराथन के नाम से भी जाना जाता है| इस दिन करीबन 36 मुगल ठिकानों पर पुनः आधिपत्य स्थापित की गया और महाराणा प्रताप का शानदार तरीके से राज्याभिषेक हुआ| इस युद्ध ने महाराणा के त्याग और बलिदान को महान रूप दिया और जनता को विश्वास दिलाया कि दृढ निष्ठां से जीत होती हैं|
जहांगीर से युद्ध : बाद में हल्दी घाटी के युद्ध में करीब 20 हजार राजपूतों को साथ लेकर महाराणा प्रताप ने मुगल सरदार राजा मानसिंह के 80 हजार की सेना का सामना किया। इसमें अकबर ने अपने पुत्र सलीम (जहांगीर) को युद्ध के लिए भेजा था। जहांगीर को भी मुंह की खाना पड़ी और वह भी युद्ध का मैदान छोड़कर भाग गया। बाद में सलीम ने अपनी सेना को एकत्रित कर फिर से महाराणा प्रताप पर आक्रमण किया और इस बार भयंकर युद्ध हुआ। इस युद्ध में महाराणा प्रताप का प्रिय घोड़ा चेतक घायल हो गया था।
राजपूतों ने बहादुरी के साथ मुगलों का मुकाबला किया, परंतु मैदानी तोपों तथा बंदूकधारियों से सुसज्जित शत्रु की विशाल सेना के सामने समूचा पराक्रम निष्फल रहा। युद्धभूमि पर उपस्थित 22 हजार राजपूत सैनिकों में से केवल 8 हजार जीवित सैनिक युद्धभूमि से किसी प्रकार बचकर निकल पाए। महाराणा प्रताप को जंगल में आश्रय लेना पड़ा।
महाराणा के चेतक घोड़े का पराक्रम
महाराणा प्रताप के सबसे प्रिय घोड़े का नाम 'चेतक' था। चेतक बहुत ही समझदार और स्थिति को पल में ही भांप जाने वाला घोड़ा था। उसने कई मौकों पर महाराणा प्रताप की जान बचाई थी।
हल्दी घाटी युद्ध के दौरान प्रताप अपने पराक्रमी चेतक पर सवार हो पहाड़ की ओर जा रहे थे तब उनके पीछे दो मुगल सैनिक लगे हुए थे। चेतक ने तेज रफ्तार पकड़ ली, लेकिन रास्ते में एक पहाड़ी नाला बह रहा था। युद्ध में घायल चेतक फुर्ती से उसे लांघ गया, परंतु मुगल उसे पार न कर पाए।
चेतक नाला तो लांघ गया, पर अब उसकी गति धीरे-धीरे कम होती गई और पीछे से मुगलों के घोड़ों की टापें भी सुनाई पड़ीं। उसी समय प्रताप को अपनी आवाज सुनाई पड़ी, 'हो, नीला घोड़ा रा असवार।'
प्रताप ने पीछे मुड़कर देखा तो उसे एक ही अश्वारोही दिखाई पड़ा और वह था उनका भाई शक्ति सिंह। प्रताप के साथ व्यक्तिगत विरोध ने उसे देशद्रोही बनाकर अकबर का सेवक बना दिया था और युद्धस्थल पर वह मुगल पक्ष की तरफ से लड़ रहा था। जब उसने नीले घोड़े को बिना किसी सेवक के पहाड़ की तरफ जाते हुए देखा तो शक्ति सिंह भी चुपचाप उसके पीछे चल पड़ा था। लेकिन शक्ति सिंह ने दोनों मुगलों को मौत के घाट उतार दिया।
जीवन में पहली बार दोनों भाई प्रेम के साथ गले मिले थे। इस बीच चेतक जमीन पर गिर पड़ा और जब प्रताप उसकी काठी को खोलकर अपने भाई द्वारा प्रस्तुत घोड़े पर रख रहा था, चेतक ने प्राण त्याग दिए। बाद में उस स्थान पर एक चबूतरा खड़ा किया गया, जो आज तक उस स्थान को इंगित करता है।
कई छोटे राजाओं ने महाराणा प्रताप से अपने राज्य में रहने की गुजारिश की लेकिन मेवाड़ की भूमि को मुगल आधिपत्य से बचाने के लिए महाराणा प्रताप ने प्रतिज्ञा की थी कि जब तक मेवाड़ आजाद नहीं होगा, वे महलों को छोड़ जंगलों में निवास करेंगे। स्वादिष्ट भोजन को त्याग कंद-मूल और फलों से ही पेट भरेंगे, लेकिन अकबर का आधिपत्य कभी स्वीकार नहीं करेंगे। जंगल में रहकर ही महाराणा प्रताप ने भीलों की शक्ति को पहचानकर छापामार युद्ध पद्धति से अनेक बार मुगल सेना को कठिनाइयों में डाला था।
बाद में मेवाड़ के गौरव भामाशाह ने महाराणा के चरणों में अपनी समस्त संपत्ति रख दी। भामाशाह ने 20 लाख अशर्फियां और 25 लाख रुपए महाराणा को भेंट में प्रदान किए। महाराणा इस प्रचुर संपत्ति से पुन: सैन्य-संगठन में लग गए। इस अनुपम सहायता से प्रोत्साहित होकर महाराणा ने अपने सैन्य बल का पुनर्गठन किया तथा उनकी सेना में नवजीवन का संचार हुआ। महाराणा प्रताप सिंह ने पुनः कुम्भलगढ़ पर अपना कब्जा स्थापित करते हुए शाही फौजों द्वारा स्थापित थानों और ठिकानों पर अपना आक्रमण जारी रखा!
मुगल बादशाह अकबर ने विक्रम संवत
1635 में एक और विशाल सेना शाहबाज खान के नेतृत्व में मेवाड़ भेजी। इस विशाल सेना ने कुछ स्थानीय मदद के आधार पर वैशाख कृष्ण 12 को कुम्भलगढ़ और केलवाड़ा पर कब्जा कर लिया तथा गोगुन्दा और उदयपुर क्षेत्र में लूट-पाट की। ऐसे में महाराणा प्रताप ने विशाल सेना का मुकाबला जारी रखते हुए अंत में पहाड़ी क्षेत्रों में पनाह लेकर स्वयं को सुरक्षित रखा और चावंड पर पुन: कब्जा प्राप्त किया। शाहबाज खान आखिरकार खाली हाथ पुनः पंजाब में अकबर के पास पहुंच गया।
चित्तौड़ को छोड़कर महाराणा ने अपने समस्त दुर्गों का शत्रु से पुन: उद्धार कर लिया। उदयपुर को उन्होंने अपनी राजधानी बनाया। विचलित मुगलिया सेना के घटते प्रभाव और अपनी आत्मशक्ति के बूते महाराणा ने चित्तौड़गढ़ व मांडलगढ़ के अलावा संपूर्ण मेवाड़ पर अपना राज्य पुनः स्थापित कर लिया गया।
इसके बाद मुगलों ने कई बार महाराणा प्रताप को चुनौती दी लेकिन मुगलों को मुंह की खानी पड़ी। आखिरकार, युद्ध और शिकार के दौरान लगी चोटों की वजह से महाराणा प्रताप की मृत्यु 29 जनवरी
1597 को चावंड में हुई।
महाराणा प्रताप का हाथी
मित्रो आप सब ने महाराणा प्रताप के घोंड़े चेतक के बारे में तो सुना ही होगा, लेकिन उनका एक हाथी था। जिसका नाम था रामप्रसाद उसके बारे में आपको कुछ बाते बताता हु।
रामप्रसाद हाथी का उल्लेख अल बदायुनी ने जो मुगलों की ओर से हल्दीघाटी के युद्ध में लड़ा था अपने एक ग्रन्थ में कीया है। वो लिखता है की जब महाराणा पर अकबर ने चढाई की थी तब उसने दो चीजो की ही बंदी बनाने की मांग की थी एक तो खुद
महाराणा और दूसरा उनका हाथी रामप्रसाद। आगे अल बदायुनी लिखता है की वो हाथी इतना समजदार व ताकतवर था की उसने हल्दीघाटी के युद्ध में अकेली ही अकबर के 13
हाथियों को मार गिराया था और वो लिखता है : उस हाथी को पकड़ने के लिए हमने 7 हाथियों का एक चक्रव्यू बनाया और उन पर 14
महावतो को बिठाया तब कही जाके उसे बंदी बना पाये।
अब सुनिए एक भारतीय जानवर की स्वामी भक्ति।
उस हाथी को अकबर के समक्ष पेश किया गया जहा अकबर ने उसका नाम पीरप्रसाद रखा। रामप्रसाद को मुगलों ने गन्ने और पानी दिया। पर उस स्वामिभक्त हाथी ने 18
दिन तक मुगलों का न दाना खाया और न पानी पीया और वो शहीद हो गया
तब अकबर ने कहा था कि - जिसके हाथी को मै मेरे सामने नहीं झुका पाया उस महाराणा प्रताप को क्या झुका पाउँगा।
महाराणा प्रताप के जीवन से जुड़ी कुछ अन्य बातें
1946 में जयंत देसाई के निर्देशन में महाराणा प्रताप नाम से श्वेत-श्याम फिल्म बनी| मगर साल 2013 में सोनी टीवी ने 'भारत का वीर पुत्र – महाराणा प्रताप' नाम से धारावाहिक प्रसारित किया था जिसमें बाल कुंवर प्रताप का पात्र फैज़ल ख़ान और महाराणा प्रताप का पात्र शरद मल्होत्रा द्वारा निभाया था| वही आपको विजय नाहर की किताब हिन्दुवा सूर्य महाराणा प्रताप में भी उनके जीवन से जुड़ें कई तथ्य बताये गए हैं|
महाराणा प्रताप का वजन 110 किलो और ऊंचाई 7 फुट 5 इंच थी.
वह दो म्यान वाली तलवार और भाला रखते थे भाले का वजन 80 किलो था और कवच का भी वजन 72किलो था.
दरम्यान भाला कवच और तलवार सब को मिलाकर वह 208 किलो वजन सीने पर लेकर चलते थे. आज भी उनकी तलवार कवच आदि सामान उदयपुर के संग्रहालय में रखा गया है
अकबर ने महाराणा प्रताप को कहा था कि वह अगर उनकी अधीनता स्वीकार कर लेते हैं तो हिंदुस्तान की आधी बादशाहत उनकी होगी लेकिन महाराणा प्रताप ने उनको मना कर दिया. हल्दीघाटी की लड़ाई में मेवाड़ से 20000 तथा अकबर की तरफ से 85000 सैनिक थे. मेवाड़ के युद्ध में 48000 लोग मारे गए थे जिसमें से 8000 राजपूत और 40000 मुगल थे .इस लड़ाई में ना कोई जीता और ना कोई हारा.
अकबर 30 साल तक महाराणा प्रताप को हराने का प्रयास करता रहा लेकिन सफल ना हो पाया। महाराणा प्रताप एक ऐसे योद्धा थे जो हमेशा अपने पास दो तलवारें रखते थे, ताकि कहीं निहत्था दुश्मन सामने आ जाए तो उसे मारना ना पड़े बल्कि उसे युद्ध करके खत्म करें..।
मेवाड़ का वीर बलवान योद्धा महाराणा प्रताप की कहानी
वह दो म्यान वाली तलवार और भाला रखते थे भाले का वजन 80 किलो था और कवच का भी वजन 72किलो था.
दरम्यान भाला कवच और तलवार सब को मिलाकर वह 208 किलो वजन सीने पर लेकर चलते थे. आज भी उनकी तलवार कवच आदि सामान उदयपुर के संग्रहालय में रखा गया है
अकबर ने महाराणा प्रताप को कहा था कि वह अगर उनकी अधीनता स्वीकार कर लेते हैं तो हिंदुस्तान की आधी बादशाहत उनकी होगी लेकिन महाराणा प्रताप ने उनको मना कर दिया. हल्दीघाटी की लड़ाई में मेवाड़ से 20000 तथा अकबर की तरफ से 85000 सैनिक थे. मेवाड़ के युद्ध में 48000 लोग मारे गए थे जिसमें से 8000 राजपूत और 40000 मुगल थे .इस लड़ाई में ना कोई जीता और ना कोई हारा.
अकबर 30 साल तक महाराणा प्रताप को हराने का प्रयास करता रहा लेकिन सफल ना हो पाया। महाराणा प्रताप एक ऐसे योद्धा थे जो हमेशा अपने पास दो तलवारें रखते थे, ताकि कहीं निहत्था दुश्मन सामने आ जाए तो उसे मारना ना पड़े बल्कि उसे युद्ध करके खत्म करें..।
Nice
जवाब देंहटाएंExcellent 👌,it is quite beneficial
जवाब देंहटाएंSuper say uper
जवाब देंहटाएंThanks for your love...
हटाएंNice work for our proud full history.
जवाब देंहटाएंThanks for your appreciation..
हटाएंGreat article...
जवाब देंहटाएंबहुत ही अच्छी जानकारी
जवाब देंहटाएंDhanyavad
हटाएंSache dil se apko namaskar ramji sir ji bahut he achi jankari yese lekh aaj kal kahi nahi milte hai...ap bahut acha kam kar rahe hai...jai bhawani..
जवाब देंहटाएंJai bhawani
जवाब देंहटाएंThank you.... This blog will help in my project..... ����
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