सबसे नामचीन महान राजा सम्राट अशोक का इतिहास | Sky News Station

भारत के इतिहास में कई ऐसे महँ राजा रहे हैं जिन्हें तेज़ी बुद्धि और समझदारी के लिए पूरे विश्व में जाना जाता था | ऐसे ही एक विश्वप्रसिद्ध एवं शक्तिशाली राजा भारतीय मौर्य राजवंश के महान सम्राट चक्रवर्ती सम्राट अशोक थे | अखंड भारत पर राज करते हुए उन्होंने 304 से ईसा पूर्व 232 तक अपना साम्राज्य उत्तर में हिन्दुकुश की श्रेणियों से लेकर दक्षिण में गोदावरी नदी के दक्षिण तथा मैसूर तक तथा पूर्व में बांग्लादेश से पश्चिम में अफ़ग़ानिस्तान, ईरान तक पहुंचाया|

आरंभिक जीवन काल

सम्राट अशोक का पूरा नाम देवानांप्रिय अशोक मौर्य था उनका साम्राज्य आज का संपूर्ण भारत, पाकिस्तान, अफ़ग़ानिस्तान, नेपाल, बांग्लादेश, भूटान, म्यान्मार तक फैला हुआ था | उनके  पिता का नाम बिन्दुसार तथा माता का नाम धर्मा था| अशोक के पिता की लंका की परंपरा के मुताबिक करीब 16 पटरानियां और 101 पुत्र थे। 

वहीं उनके 100 पुत्रों में से केवल अशोक, तिष्य और सुशीम का ही उल्लेख इतिहास के पन्नों में मिलता है| सम्राट अशोक का पूरा नाम देवानाम्प्रिय था| चक्रवर्ती सम्राट अशोक विश्व के सभी महान एवं शक्तिशाली सम्राटों एवं राजाओं में सबसे पहले स्थान पर आते थे

उन्होंने अपने कार्यकाल में बौद्ध धर्म का प्रचार प्रसार किया| सम्राठ अशोक बचपन से ही सत्य, अहिंसा एवं शाकाहारी थे आपको जान कर यकीन नहीं होगा मगर सम्राट अशोक अपने  जीवन काल मे एक भी युद्ध में हारे नहीं है|

सम्राट अशोक का बचपन 

बचपन से  तीरंदाजी में माहिर अशोक उच्च श्रेणी के शिकारी भी थे| इसी कारण वह प्रजा के चहेते शासक भी थे| वहीं सम्राट अशोक की विलक्षण प्रतिभा और अच्छे सैन्य गुणों की वजह से उनके पिता बिन्दुसार भी उनसे बेहद प्रभावित थे, इसलिए उन्होंने सम्राट अशोक को बेहद कम उम्र में ही मौर्य वंश की राजगद्दी सौपी|

बौद्ध के प्रचारक थे सम्राठ अशोक

अपने कार्यकाल में सम्राठ अशोक ने पूरे एशिया में बुध धर्म का प्रचार और प्रसार किया| कलिंग युद्ध के करीब दो साल पहले सम्राट अशोक भगवान बुद्ध की मानवतावादी शिक्षाओं से प्रभावित होकर बौद्ध अनुयायी हो गये थे | जिसके बाद उन्होने कई स्तम्भ खड़े कर दिये जो आज भी नेपाल में उनके जन्मस्थल - लुम्बिनी में और मायादेवी मन्दिर के पास, सारनाथ,बौद्ध मन्दिर बोधगया, कुशीनगर एवं आदी श्रीलंका, थाईलैंड, चीन इन देशों में आज भी अशोक स्तम्भ के रूप में देखे जा सकते है शिलालेख शुरू करने वाला पहला शासक सम्राट अशोक बने थे। जिन्होंने सबसे पहले बौद्ध धर्म का सिद्धान्त लागू किया जो आज भी कार्यरत है|

सम्राठ अशोक का साम्राज्य

अशोक के बडे़ भाई सुशीम अवन्ती की राजधानी उज्जैन के प्रांतपाल थे, उसी दौरान अवन्ती में हो रहे विद्रोह में भारतीय और यूनानी मूल के लोगों के बीच दंगा हुआ| जिसे रोकने के लिए बिन्दुसार द्वारा अशोक को भेजा गया और वह अपनी कुशल रणनीति से शांति कायम करने में सफल हुए| जिसके बाद बिन्दुसार ने सम्राट अशोक को मौर्य वंश का शासक बना दिया|

मगर 272 ईसा पूर्व में सम्राट अशोक के पिता बिन्दुसार की मृत्यु हो गयी जिसके बाद अशोक और उनके सौतेले भाईयों के बीच घमासान युद्ध हुआ। इसी दौरान सम्राट अशोक की शादी विदिशा की बेहद सुंदर राजकुमारी शाक्या कुमारी से हुई| शादी के बाद दोनों को महेन्द्र और संघमित्रा नाम की संतानें  हुई और कुछ इतिहासकारों का मानना हैं कि 268 ईसा पूर्व के दौरान मौर्य वंश के सम्राट अशोक ने अपने मौर्य सम्राज्य का विस्तार के लिए करीब 8 सालों तक युद्ध किया|

मगर धीरे-धीरे सम्राठ अशोक ने सभी उपमहाद्धीपों तक मौर्य सम्राज्य का विस्तार किया, बल्कि भारत और ईरान की सीमा के साथ-साथ अफगानिस्तान के हिन्दूकश में भी मौर्य सम्राज्य का सिक्का चलवाया| उन्होंने दक्षिण के मैसूर, कर्नाटक और कृष्ण गोदावरी की घाटी में भी कब्जा किया, उनके सम्राज्य की राजधानी पाटलिपुत्र (मगध, आज का बिहार) और साथ ही उपराजधानी तक्षशिला और उज्जैन भी थी| इस तरह सम्राट अशोक का शासन धीरे-धीरे बढ़ता गया और उनका सम्राज्य उस समय तक का सबसे बड़ा भारतीय सम्राज्य बना, हालांकि, सम्राट अशोक मौर्य सम्राज्य का विस्तार तमिलनाडू, श्रीलंका और केरल में करने में नाकामयाब हुआ|

अशोक और कलिंगा युद्ध

क़रीबन 261 ईसापूर्व  में भारतीय इतिहास के सबसे शक्तिशाली और ताकतवर योद्धा सम्राट अशोक ने अपने मौर्य सम्राज्य का विस्तार करने के लिए कलिंग (वर्तमान ओडिशा) राज्य पर हमला किया और इसके खिलाफ एक विध्वंशकारी युद्ध की घोषणा हुई

ऐसा माना जाता है इसमें करीब 1 लाख लोगों की बेरहमी से हत्या कर दी गई, मरने वालों में सबसे ज्यादा संख्या सैनिकों की थी| इसके साथ ही इस युद्ध में करीब डेढ़ लाख लोग बुरी तरह घायल हुए| इस तरह सम्राट अशोक कलिंग पर अपना कब्जा जमाने वाले मौर्य वंश के सबसे पहले शासक तो बन गए, लेकिन इस युध्द में हुए भारी रक्तपात ने दुःखी कर दिया|

सम्राट अशोक से जुडी कुछ अन्य बातें

·        सम्राट अशोक के नाम का अर्थ दर्दरहित और चिंतामुक्तहोता है| ऐसा ही उनका व्यक्तित्व भी रहा था| अपने आदेशपत्र में उन्हें प्रियदर्शी एवं देवानाम्प्रिय कह कर भी पुकारा गया है|

·        आउटलाइन ऑफ़ हिस्ट्री की  किताब में अशोका में बारे में बताया गया हैं कि इतिहास में अशोका को हजारो नामो से जानते है, जहां जगह-जगह पर उनकी वीरता के किस्से और गाथा प्रचलित है, वे एक सर्वप्रिय, न्यायप्रिय, दयालु सम्राट थे|

·        सम्राट अशोक ने कई सराहनीय काम किए इसलिए सम्राट अशोक को अहिंसा, शांति, लोक कल्याणकारी नीतियों के लिए एक अतुलनीय और महान अशोक के रुप में जाना जाता था|

·          वह हमेशा से एक निडर एवं साहसी राजा और योद्धा रहे थे|

·         सम्राट अशोक की कई पत्नियां थी, लेकिन सिर्फ महारानी देवी को ही उनकी रानी माना गया|

·         मौर्य वंश में 40 साल के सबसे लंबे समय तक शासन करने वाले सम्राट अशोक ही एक मात्र शासक थे|

अशोक स्तंभ का इतिहास

सम्राट अशोक मौर्य वंश (Maurya Dynasty) का तीसरे शासक थे और प्राचीन काल में भारतीय उपमहाद्वीप के सबसे ताकतवर, शक्तिशाली और प्रभवि राजा थे|  अशोक ने कलिंग के युद्ध के बाद बौद्ध धर्म ग्रहण किया और धर्म के सिद्धांतों के प्रचार प्रसार के लिए अपना जीवन समर्पित किया

जिसके बाद अशोक ने देश के विभिन्न भागों में कई स्तूपों और स्तंभों का निर्माण कराया| इनमें से एक स्तंभ जो सारनाथ में स्थित है, को भारत के राष्ट्रीय प्रतीक (National Emblem) के रुप में अपनाया गया है

सम्राट अशोक ने भारत के अलावा बाहर के देशों में भी बौद्ध धर्म का प्रचार किया और उसने अपने बेटे महेंद्र और बेटी संघमित्रा को बौद्ध धर्म का प्रचार करने के लिए श्रीलंका भेजा था| सारनाथ में स्थित इस स्तम्भ को चुनार के बलुआ पत्थर(Sandstone) के लगभग 45 फुट लंबे प्रस्तरखंड से निर्मित किया गया|

सम्राट अशोक की मृत्यु

40 सालों तक मौर्य वंश का साम्राज्य सँभालने के बाद करीब 232 ईसापूर्ऩ के आसपास उनकी मृत्यु हो गयी थी| कुछ इतिहासकारों के अनुसार ऐसा माना जाता है कि सम्राट अशोक की मृत्यु के बाद मौर्य वंश का सम्राज्य करीब 50 सालों तक चला |

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"मराठा गौरव' छत्रपति शिवाजी महाराज के जीवन से जुड़ीं जानकारियां

छत्रपती शिवाजी महराज ने मराठा साम्राज्य की नीव रखी थी | उनकी महानता और कौशलता के कारण  आज उन्हें विदेशों में भी जाना जाता है | उनकी रणनीति और राजनीतिक समझ उन्हें औरों से अलग बनानाती है| तो चलिए आज हम आपको  छत्रपती शिवाजी महाराज के जीवन की कहानी बताते हैं कैसे वह एक आम राजा से मराठा सम्राठ बनें|

छत्रपती शिवाजी महाराज का आरंभिक जीवन

भारत में मराठा साम्राज्य की नींव रखने वाले महान राजा छत्रपती शिवाजी महाराज ने (1630-1680 .) तक भारत के सबसे महान रणनीतिकार माने जाते थे| उनका जन्म जीजाबाई और शाहजी भोसले के यहाँ 19 फरवरी, 1630 में शिवनेरी दुर्ग में हुआ था| शिवाजी का पूरा नाम शिवाजी भोंसले था| बचपन से शिवाजी महाराज राजनीति और युद्ध शिक्षा में माहिर थे| उनके बड़े भाई का नाम सम्भाजी था जो अधिकतर समय अपने पिता शाहजी भोसलें के साथ रहना पसंद करते थे| बचपन से शिवाजी राजे के हृदय में मुग़ल शासक को हारने की लौ पैदा हो गयी थी इस बात सारा श्रेय उनकी माता को जाता हैं| जो खुद प्रतिभावान और शक्तिशाली महिला थी|

वैवाहिक जीवन

·    छत्रपति शिवाजी महाराज का विवाह सन् 14 मई 1640 में सइबाई निंबाळकर के साथ लाल महल, पुणे में हुआ| समय की मांग के अनुसार तथा सभी मराठा सरदारों को एक छत्र के नीचे लाने के लिए महाराज को 8 विवाह करने पडे़ थे|

मराठा सम्राठ से जुडी कुछ अन्य बातें

उन्होंने कई सालों तक औरंगज़ेब के मुगल साम्राज्य से संघर्ष किया और उनसे युद्ध कर उन्हें मात दी | साल 1674 में रायगढ़ में उनका राज्यभिषेक हुआ और वह "छत्रपति" बने| छत्रपती शिवाजी महाराज ने अपनी अनुशासित सेना एवं सुसंगठित प्रशासनिक इकाइयों कि मदद से समर-विद्या में अनेक नवाचार किये तथा छापामार युद्ध (Gorilla War) की नयी शैली (शिवसूत्र) विकसित की|  अपने कार्यकाल में उन्होंने प्राचीन हिंदू राजनीतिक प्रथाओं तथा दरबारी शिष्टाचारों को पुनर्जीवित किया और फारसी के स्थान पर मराठी और संस्कृत को राज काज की भाषा बनाया|

इन्ही कारणों से भारत के स्वतंत्रता संग्राम के दौरान  बहुत से लोगों ने छत्रपति शिवाजी महाराज के जीवन से प्रेरणा लेकर भारत की आज़ादी के लिये अपना तन, मन धन न्यौछावर कर दिया|


छत्रपति शिवाजी के वर्चस्प की कहानी

छत्रपति के शासनकाल में बीजापुर का राज्य आपसी संघर्ष तथा विदेशी आक्रमण काल के दौर से बुरे वक़्त से गुज़र रहा था| ऐसे में उन्होंने मावलों को बीजापुर के ख़िलाफ संगठित किया |  मावल प्रदेश पश्चिम घाट से जुड़ा है, वे संघर्षपूर्ण जीवन व्यतीत करने के कारण कुशल योद्धा माने जाते थे | इस प्रदेश में मराठा और सभी जाति के लोग रहते हैं| शिवाजी महाराज इन सभी जाति के लोगों को लेकर मावलों नाम देकर सभी को संगठित किया और उनसे सम्पर्क कर उनके प्रदेश से परिचित हो गए थे| मावल युवकों को लाकर उन्होंने दुर्ग निर्माण का कार्य शुरू किया|

मावलों का सहयोग शिवाजी महाराज के लिए बाद में उतना ही महत्वपूर्ण साबित हुआ जितना शेरशाह सूरी के लिए अफ़गानों का साथ| उस समय बीजापुर आपसी संघर्ष तथा मुग़लों के आक्रमण से परेशान था|  बीजापुर के सुल्तान आदिलशाह ने बहुत से दुर्गों से अपनी सेना हटाकर उन्हें स्थानीय शासकों के हाथ सौंप दिया था| जब आदिलशाह बीमार पड़ा तो बीजापुर में अराजकता फैल गई और शिवाजी महाराज ने अवसर का लाभ उठाकर बीजापुर में प्रवेश का निर्णय लिया| शिवाजी महाराज ने इसके बाद के दिनों में बीजापुर के दुर्गों पर अधिकार करने की नीति बनाई और कामयाब हुए| सबसे पहले उन्होंने रोहिदेश्वर का दुर्ग अपनाने की रणनीति बनाई|

कभी भी मुस्लिम विरोधी नहीं रहे शिवाजी

कई बार अलग-अलग समुदायों द्वारा शिवाजी पर मुस्लिम विरोधी होने का दोषारोपण किया जाता रहा है, पर इतिहासकारों की माने तो यह सत्य इसलिए नहीं कि उनकी सेना में तो अनेक मुस्लिम नायक एवं सेनानी शामिल थे| वास्तव में शिवाजी का सारा संघर्ष उस कट्टरता और उद्दंडता के विरुद्ध था, जिसे औरंगजेब जैसे शासकों और उसकी छत्रछाया में पलने वाले लोगों ने अपना रखा था| 1674 की गर्मियों में शिवाजी ने धूमधाम से सिंहासन पर बैठकर स्वतंत्र प्रभुसत्ता की नींव रखी थी| जिससे दबी-कुचली हिन्दू जनता भयमुक्त हो गयी|

औरंगजेब और छत्रपति शिवाजी की लड़ाई

शिवाजी की बढ़ती हुई ताकत को देख कर मुगल बादशाह औरंगजेब ने दक्षिण में नियुक्त अपने सूबेदार को उन पर चढ़ाई का आदेश दिया| मगर इस लड़ाई में मात कहते हुए उसने अपना पुत्र खो दिया और खुद उसकी अंगुलियां कट गई| जिससे वह मैदान छोड़कर भागने पर मज़बूर हो गए|  इस घटना के बाद औरंगजेब ने अपने सबसे प्रभावशाली सेनापति मिर्जा राजा जयसिंह के नेतृत्व में लगभग- लगभग1,00,000 सैनिकों की फौज भेजी थी| शिवाजी को कुचलने के लिए राजा जयसिंह ने बीजापुर के सुल्तान से संधि कर पुरन्दर के क़िले को अधिकार में करने की अपने योजना के प्रथम चरण में 'व्रजगढ़' के किले पर अपना कब्ज़ा जमा लिया| पुरन्दर के क़िले को बचा पाने में अपने को असमर्थ जानकर शिवाजी ने महाराजा जयसिंह से संधि की पेशकश की। दोनों नेता संधि की शर्तों पर सहमत हो गए और 22 जून, 1665 . को 'पुरन्दर की सन्धि' संपन्न हुई|



कोंकण पर अधिकार

दक्षिण भारत में औरंगजेब की अनुपस्थिति और बीजापुर की डवाँडोल राजनीतिक के कारण शिवाजी ने समरजी को जंजीरा पर आक्रमण के लिए कहा मगर जंजीरा के सिद्दियों के साथ उनकी लड़ाई कई दिनों तक चली| इसके बाद शिवाजी ने खुद जंजीरा पर आक्रमण किया और दक्षिण कोंकण पर अधिकार कर लिया और दमन के पुर्तगालियों से वार्षिक कर इक्कठा किया| इस समय तक शिवाजी 40 दुर्गों के मालिक बन चुके थे|

औरंगजेब कौन था

औरंगज़ेब शाहजहां और मुमताज़ का बेटा था| औरंगज़ेब के बचपन का अधिकांश समय नूरजहां के पास बीता| आगरा पर कब्जा कर जल्दबाजी में औरंगज़ेब ने अपना राज्याभिषक "अबुल मुजफ्फर मुहीउद्दीन मुजफ्फर औरंगज़ेब बहादुर आलमगीर" की उपाधि से दिल्ली में करवाया| सम्राट औरंगज़ेब ने इस्लाम धर्म के महत्व को स्वीकारते हुए क़ुरानको अपने शासन का आधार बनाया |


कुछ  रोचक तथ्य छत्रपति शिवाजी महाराज के बारे में

शिवाजी बहुत बुद्धिमान थे और उन्हे यह कतई मंजूर नहीं था की लोग जात पात के झगड़ों में उलझे रहे| वह किसी भी धर्म के खिलाफ नही थे | उनका  नाम भगवान शिव के नाम से नही  अपितु एक क्षेत्रीय देवता शिवाई (Shivai) से लिया गया है।

उन्होंने एक शक्तिशाली नौसेना का निर्माण किया था | इसलिए उन्हें भारतीय नौसेना के पिता के रूप में जाना जाता है| अपने प्रारंभिक चरणों में ही उनको नौसैनिक बल के महत्व का एहसास हो गया था | क्योंकि उन्हें यकीन था कि यह डच, पुर्तगाली और अंग्रेजों सहित विदेशी आक्रमणकारियों से स्वतंत्र रखेगा और समुद्री डाकुओं से कोंकण तट की भी रक्षा करेगा| यहाँ तक कि उन्होंने जयगढ़, विजयदुर्ग, सिन्धुदुर्ग और अन्य कई स्थानों पर नौसेना किलों का निर्माण किया। क्या आपको पता है कि उनके पास चार अलग-अलग प्रकार के युद्धपोत भी थे जैसे मंजुहस्म पाल्स (Manjuhasm Pals), गुरब्स (Gurabs) और गल्लिबट्स (Gallibats)|

शिवाजी युद्ध की रणनीति बनाने में माहिर थे और सीमित संसाधनों के होने के बावजूद छापेमारी युद्ध कौशल का परिचय उन्होने तब दिया जब बहुत ही कम उम्र मात्र 15 साल में 'तोरना' किले पर कब्जा करके बीजापुर के सुल्तान को पहला तगड़ा झटका दिया था। 1655 आते आते उन्होने एक के बाद एक कोंडन, जवली और राजगढ़ किलों पर कब्जा कर धीरे धीरे सम्पूर्ण कोकण और पश्चिमी घाट पर कब्जा जमा लिया था |

क्या आप जानते है कि बीजापुर को जीतने के लिए शिवाजी ने औरंगजेब की सहायता के लिए हाथ आगे भड़ाया था | पर ऐसा हो ना सका क्योंकि अहमदनगर के पास मुगल क्षेत्र में दो अधिकारियों ने छापा मार दिया था |

वह शिवाजी थे, जिन्होंने मराठों की एक पेशेवर सेना का गठन किया | इससे पहले मराठों की कोई अपनी सेना नही थी | उन्होंने एक औपचारिक सेना जहा कई सैनिकों को उनकी सेवाओं के लिए साल भर का भुगतान किया गया उसका गठन किया था। मराठा सेना कई इकाइयों में विभाजित थी और प्रत्येक इकाई में 25 सैनिक थे। हिंदू और मुस्लिम दोनों को बिना किसी भेदभाव के सेना में नियुक्त किया जाता था।

वह महिलाओं के सम्मान के कट्टर समर्थक थे | शिवाजी ने महिलाओं के खिलाफ दृढ़ता से उन पर हुई हिंसा या उत्पीड़न का विरोध किया था | उन्होंने सैनिकों को सख्त निर्देश दिये थे कि छापा मारते वक्त किसी भी महिला को नुकसान नही पहुचना चाहिए | यहा तक कि अगर कोई भी सेना में महिलाओं के अधिकारों का उल्लंघन करते वक्त पकड़ा गया तो गंभीर रूप से उसे दंडित किया जाएगा |

पन्हाला किले की घेराबंदी से भागने में शिवाजी कामियाब हुए थे | इसके पीछे एक कहानी है वो ये कि जब शिवाजी महाराज सिद्दी जौहर की सेना द्वारा पन्हाला किला में फँस गये थे, तब इससे बचने के लिए उन्होंने एक योजना तैयार की और फिर उन्होंने दो पालकियों की व्यवस्था की जिसमें एक नाई शिव नहावीं को बिठा दिया जो बिकुल शिवाजी की तरह दिखता था और उसे किले से बाहर का नेतृत्व करने के लिए जाने को कहा,इतने में दुशमन के सैनिक नकली पालकी के पीछे चले गए और इस तरह से वह 600 सैनोकों को चकमा देकर भागने में कामियाब हुए |



वह गुरिल्ला युद्ध के प्रस्तावक थे | उनको पहाडों का चूहा कहा जाता था क्योंकि वह अपने इलाके की भूगोलिक,गुरिल्ला रणनीति या गनिमी कावा जैसे की छापा मरना, छोटे समूहों के साथ दुश्मनो पे हमला करना आदि अच्छी तरह से वाकिफ थे | उन्होंने कभी भी धार्मिक स्थानों या वहा पे रहने वाले लोगो के घरो में कभी छापा नही मारा |

उनकी खासियत थी की वह अपने राज्य के लिए बादमें लड़ते थे पहले भारत के लिए लड़ते थे | उनका लक्ष्य था नि: शुल्क राज्य की स्थापना करना और हमेशा से अपने सैनिकों को प्रेरित करना की वह भारत के लिए लड़े और विशेष रूप से किसी भी राजा के लिए नहीं |

Source: www.upload.wikimedia.org & https://bit.ly/39VPZ0c


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